I wish I were gigantic!

I dedicate this poem to all innocent people killed and living in conflict zones, including in Nagorno-Karabakh.
I wish I were gigantic,
Those who launch a war
Don’t tell me you are leading,
You laugh,
You watch,
Ignore,
You keep my soul bleeding.

I wish I were gigantic,
As big as Planet Earth,
I ain’t romantic,
I’m antique,
I’ve not sense of self-worth.

I let you call me villain
And stop my heavy breath.
So choak me! Then I fill in
With my body Planet Death!

I wish I were gigantic,
Comes after me Full Bliss,
I leave the world sans panic,
Sympatehic and in Peace!

I wish I were gigantic!

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The poem has been translated by my dear friend Ravindra Singh into Hindi:
काश यहां पर होती प्रभुता
( उज़्बेकी कवि आज़म जान अबीदोव  की अंग्रेज़ी कविता आय  विश आय वर… का हिन्दी अनुवाद )

काश यहां पर होती प्रभुता
कहते उनसे, जो युद्ध पिपाशु;
कहते उनसे -क्या लगता है?
कैसा तुम नेतृत्व कर रहे ,
तुम कहते हो तुम में दृष्टि!
अरे चलो! बस दिल दुखता है!
होती काश यहां पर प्रभुता ,
जैसे इस धरती की क्षमता !
नही कहो हमको रोमांटिक,
कह लो मेरी सोच पुरानी ,
नहीं हमें खुद पर इतराना ,
कह लो हमको ,तुम खलनायक ,
मेरी आहों को तुम हर लो ,
बन्द कर सको ,कर दो सांसे ,
और पाट दो मृत्यु ग्रह को
लेकर के तुम गात हमारा !

काश यहां होती व्यापकता ,
आती चली दुआओं में चल
करता मैं निर्मल संकट से ,
इस दुनिया को,
बहता यहाँ सिर्फ अपनापन,शांति गूँजती…
काश यहाँ पर होती प्रभुता !

मूल अंग्रेज़ी कवि : आज़म जान अबीदोव
उज़्बेकिस्तान के जाने माने कवि एवं संस्कृति कर्मी

अनुवादक : प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
प्रोफेसर अंग्रेज़ी
अंग्रेज़ी विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ ।